शासन द्वारा चलाये जा रहे नक्सल आत्मसमर्पण - पुनर्वास योजना एवं गरियाबंद पुलिस
अपने आत्मसमर्पित साथियों के खुशहाल जीवन से प्रभावित होकर नगरी एरिया कमेटी - सचिव 08 लाख ईनामी महिला माओवादी द्वारा आत्मसमर्पण
* जानसी उर्फ वछेला मटामी, ग्राम कोंदावाही, थाना गट्टा, तहसील - धनोरा, जिला गढचिरौली (महाराष्ट्र) कि निवासी है।
* जुलाई/2005 से फरवरी / 2006 तक जनमिलिशिया सदस्य के रूप में कार्य किया।
* फरवरी/2006 को चातगांव एलओएस कमाण्डर - रनिता द्वारा माओवादी संगठन में भर्ती कराया गया। जहां पर वह जुलाई 2007 तक एलओएस में कार्य किया ।
** नर्मदा (डीव्हीसीएम) नामक नक्सली द्वारा जुलाई / 2007 को बदली कर गार्ड बनाया गया।
सितम्बर/2007 को माड क्षेत्र में एसजेडसी मीटिंग में इसे गरियाबंद क्षेत्र में कार्य करने के लिये प्रस्तावित किया ।
*** सितम्बर/2007 से मार्च 2008 तक माड में इन्होने प्रेस, बैनर, पोस्टर, पाम्पलेट तैयार करने का प्रशिक्षण लिया।
** अप्रैल/2008 को जिला कांकेर - धमतरी से होते हुये गरियाबंद पहुंची, तब से 2011 तक एसजेडसी - कार्तिक के साथ प्रेस संबंधी कार्य किया ।
*** 31/अक्टूबर/2011 को डीव्हीसीएम - सत्यम गावडे के साथ विवाह कर साथ में जुलाई / 2014 तक मैनपुर डिवीजन में कार्य किया।
*** जुलाई/2014 से नगरी एरिया कमेटी - एसीएम के पद में रहकर जुलाई 2018 तक कार्य किया।
जुलाई/2018 से नगरी एरिया कमेटी - डिप्टी कमाण्डर के पद में रहकर जुलाई / 2020 तक कार्य किया।
जुलाई / 2020 से जुलाई / 2022 तक नगरी एरिया कमेटी - कमाण्डर के रूप कार्य किया ।
जुलाई / 2022 से अब तक नगरी एरिया कमेटी - सचिव के रूप में कार्य किया।
वर्तमान में माओवादियों कि खोखली हो चुकी विचारधारा व उनके दूषित कार्यो को साझा करते हुये बताया कि आज माओवादी निर्दोष ग्रामीणों की पुलिस मुखबीरी के शक में जबरदस्ती हत्या, लोगों को बेवजह राशन - सामानों के लिए परेशान करना, शासन के विकास कार्यो को नुकसान पहुचाना या पूरा नहीं होने देना, बस्तर के छोटे-छोटे युवक-युवतियों बहला-फुसला या उनके परिवार वालो को डरा धमका का माओवादी संगठन में शामिल करना, बडे माओवादियों द्वारा छोटे कैडरों का शोषण करना, स्थानीय लोगो को शासन के विरूद्ध आंदोलन के लिए उकसाना एवं निर्माण कार्यो में लगे ठेकेदारो, पत्ता ठेकेदारों से अवैध वसूली का आज माओवादी संगठन अड्डा बना लिये है । इन्ही सब स्थितियों को देखते हुये तथा हमारे स्थानीय लोगो के साथ हो रहे माओवादियों द्वारा अत्याचार, शोषण व लोगो की बेबशी को देखकर मन विचलित हो जाता था ।
शासन की आत्मसमर्पण-पुनर्वास नीति के तहत समर्पण करने पर पद अनुरूप ईनाम राशि की सुविधा, हथियार के साथ समर्पण करने पर ईनाम राशि की सुविधा, बिमार होने पर स्वास्थ्य सुविधा, आवास की सुविधा, रोजगार की सुविधा को हमारे कई माओवादी साथी (आयतु, संजय, मल्लेश, मुरली, टिकेश, प्रमीला, लक्ष्मी, मैना, क्रांति, राजीव, ललिता, दिलीप, दीपक, मंजुला, सुनीता, कैलाश, रनिता, सुजीता, राजेन्द्र ) आत्मसर्मण कर लाभ उठा रहे है जिसके बारे में हम लोगो को समाचार पत्रो व स्थानीय ग्रामीणों के माध्यम से जानकारी प्राप्त होती थी । गरियाबंद पुलिस द्वारा जंगल - गांवों में लगाये समर्पण नीति के पोस्टर - पाम्पलेट भी प्राप्त होते थे जिससे मेरे मन में विचार आया कि मैं क्यों जंगल में पशुओं की तरह दर-दर भटक रही हूं। और इन बडे माओवादी कैडरो की गुलामी कर रही हूं। अपने पति सत्यम गावडे के मुठभेड में मारे जाने बाद मानसिक रूप से टूट गई तथा जंगल की परेशानियां तथा आत्मसमर्पित साथियों के खुशहाल जीवन से प्रभावित होकर मैं अपने परिवार के साथ अच्छा जीवन बिताने के लिए आत्मसर्मपण के मार्ग को अपनाई हूं, सर्मपण में सुकमा पुलिस का विशेष योगदान रहा है ।